(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) चक्रवात फानी (Cyclone Fani)
मुख्य बिंदु:
भारत के पूर्वी तट पर आया चक्रवात फानी पिछले कुछ दिनों से चर्चा में है। बंगाल की खाड़ी से उठे इस चक्रवात का असर सीधे तौर पर भारत में देखने को मिल रहा है। फानी चक्रवात का असर के ओडिशा के अलावा तटीय राज्यों आंध्र प्रदेश, केरल और तमिनाडु जैसे इलाकों में भी देखने को मिल रहा है।आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ ओडिशा के लगभग 10 से अधिक ज़िलों में फानी चक्रवात का असर सबसे ज़्यादा है। इसके अलावा चक्रवात के चलते ओडिशा में बिजली, संचार, रेलवे और एयरपोर्ट मार्ग भी बाधित हैं। पिछले दो दशकों में दो बड़े चक्रवात का दंश झेल चुके ओडिशा में ये तीसरा बड़ा चक्रवात है। इससे पहले साल 1999 में सुपर साइक्लोन और 2013 में आए फालेन चक्रवात ने ओडिशा में भारी तबाही मचाई थी।
DNS में आज हम आपको फानी चक्रवात के बारे में बताएंगे और साथ ही इसके दूसरे पहलुओं को भी समझने की कोशिश करेंगे।
दरअसल चक्रवात निम्न वायुदाब वाली ऐसी मौसमी परिघटना होती है जिसमें हवाएं बाहर से अंदर की ओर तेज़ गति से घूमती है। पृथ्वी के दोनों उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों में चक्रवात के मामले देखे जा सकते हैं। दक्षिणी गोलार्द्धों में ये चक्रवात घड़ी की सुई की दिशा यानी Clockwise जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में ये चक्रवात घड़ी की सुई के विपरीत यानी Anti Clockwise घूमते हैं।
भारत में आने वाले चक्रवात मुख्य रूप से दो मौसमों में आते हैं। जिनमें पहला मानसून के पहले यानी अप्रैल - मई के महीने के बीच और दूसरा मानसून के बाद यानी अक्टूबर - दिसम्बर महीने के बीच चक्रवात के प्रकारों की बात करें तो चक्रवात मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। जिन्हें उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण चक्रवात के नाम से जाना जाता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात का प्रभाव प्रमुख रूप से प्रशांत महासागर, हिंद महासागर और उत्तरी अटलांटिक महासागर के क्षेत्रों पर ज्यादा रहता है। इस क्षेत्र में आने वाले चक्रवातों को अपने स्थान और तीव्रता के आधार पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस श्रेणी में हरिकेन, टाइफ़ून, ट्रोपिकल स्ट्रोमी, साइक्लोनिक स्टोर्म ट्रोपिकल डिप्रेशन और साइक्लोन यानी चक्रवात शामिल होते हैं।
इन चक्रवातों की रफ़्तार क़रीब 50 से 300 km/h तक होती है क्योंकि इनमें वाष्पीकरण के कारण भारी मात्रा में Laten Heat रहती है। मौजूदा समय में आया फानी चक्रवात भी एक उष्ण-कटिबंधीय यानी ट्रॉपिकल चक्रवात है जोकि कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच उठते हैं।
जबकि शीतोष्ण चक्रवातों का प्रभाव उत्तरी एटलांटिक महासागर और उत्तरी प्रशांत महासागर में रहता है। इन क्षेत्रों में चक्रवात की उत्पत्ति महासागरों के उन क्षेत्रों में होती है जहां उष्ण कटिबंधीय वायु शीत कटिबंधीय वायु से मिलती है। शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में आने वाले इन चक्रवातों की रफ्तार अलग-अलग होती है, जबकि इनके आगे की गति 30 से 50 किलोमीटर प्रति घण्टे तक होती है।
तीन तरफ सागरों से घिरे भारत में चक्रवात आम बात है। भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर, पश्चिम में अरब सागर और पूरब में बंगाल की खाड़ी मौजूद है। भारत में आने वाले ज़्यादातर चक्रवातों के स्रोत अरब सागर और बंगाल की खाड़ी है।
कैसे पड़ा इस चक्रवात का नाम फानी
दरअसल पृथ्वी के दोनों उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों पर चक्रवात आते रहते हैं। भारत के मौसम विभाग के अनुसार पूरी दुनिया में ये चक्रवात लगभग 80 से भी ज़्यादा बार आते हैं। चक्रवातों के नाम रखने की प्रक्रिया काफी पुरानी है। शुरुआती दौर में समुद्री चक्रवातों के नाम रखने की प्रक्रिया ऑस्ट्रेलिया से शुरू हुई थी। इस दौरान चक्रवातों के नाम अपनी मर्ज़ी से रखे जाते थे। लेकिन 1953 के बाद इसके लिए नियम कायदे तय कर दिए गए। जिसके बाद मयामी नेशनल हरिकेन सेंटर और वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन यानी WMO के ज़रिए चक्रवातों के नाम रखे जाते रहे है।
अगर बात भारत की करें तो भारत में आने वाले ज़्यादातर चक्रवात अक्सर अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उठते हैं। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उठने वाले चक्रवातों के नाम देने की जिम्मेदारी आठ उत्तरी समुद्री देशों की है। इनमें भारत पकिस्तान के अलावा बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका मालदीव, ओमान और थाईलैंड देश शामिल हैं। ये सभी देश आठ आठ नाम सुझाते हैं यानी एक तरीके से मौजूदा समय में इस क्षेत्र में आने वाले चक्रवातों के लिए 64 नाम पहले से ही तैयार हैं। जैसे ही चक्रवात इन आठ देशों के किसी हिस्से में पहुँचता है तो सूची में से उपलब्ध पहला नाम रख लिया जाता है। फिलहाल भारत के पूर्वी तट से टकराए चक्रवात का नाम बांग्लादेश की ओर से सुझाए गए नाम के आधार पर रखा गया है। बांग्लादेश ने चक्रवात के लिए अपने आठ नामों में से एक नाम 'फोनी' भी सुझाया था जिसका अर्थ है सांप यानी स्नेक। बांग्लादेश की और से सुझाए गए 'फोनी' इस नाम को भारत में फानी, फनी और फणी का नाम दिया जा रहा है।
चक्रवात के रूप में आने वाली इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं में भारी जान और माल का नुकसान होता है। तटीय इलाकों में ये चक्रवात न सिर्फ आधारभूत ढ़ांचे को करते हैं बल्कि इनसे फ़सलें और पशुधन भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं। संकट की इस स्थिति में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग IMD प्राकृतिक आपदाओं पर अपनी नज़र बनाए रखता है। IMD विभाग डोप्लर रडार और सैटेलाइट के ज़रिए मौसम से सम्बंधित घटनाओं पर पर नज़र रखता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग क़रीब 96 घंटे से पहले ही मौसम से जुडी जानकारियां साझा कर देती है ताकि ऐसे प्राकृतिक घटनाओं के वक़्त ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को समय रहते सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया जा सके। ऐसे मौकों पर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग यानी IMD सम्बंधित इलाकों में समय समय पर समाचार पत्रों, रेडियो और टेलीविजन के ज़रिए लोगों तक सन्देश पहुंचता रहता है। इसके अलावा मौसम विभाग इस स्थिति में मछुआरों को भी समुद्र में जाने से रोकती है और स्थानीय लोगों को भी सतर्क रहने की हिदायत देती है।
भारत में इस तरह की आपदाओं से निपटे के लिए National Disaster Response Force का गठन किया गया है। राष्ट्रीय आपदा राहत बल (National Disaster Response Force, NDRF एक पुलिस बल है। NDRF का निर्माण ''डिजास्टर मैनेजमेंट ऐक्ट 2005'' के तहत किया गया था। इस पुलिस बल का मुख्य कार्य किसी आपातकाल या आपदा के समय अति विशेषज्ञता के साथ संगठित होकर प्रभावितों को उचित और सुरक्षित स्थान पर ले जाना (बचाना) या उनके जान माल की रक्षा करना होता है। ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के वक़्त NDRF के अलावा सेना और कई NGO भी मदद करते है।